अबुल कलाम आजाद
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
इस लेख की तटस्थता इस समय विवादित है। कृपया वार्ता पन्ने की चर्चा को देखें। जब तक यह विवाद सुलझता नहीं है कृपया इस संदेश को न हटाएँ। (June 2009) |
अबुल कलाम आजाद | |
---|---|
चित्र:MK Azad.jpg | |
जन्म - तिथि: | 11 नवंबर 1888 |
जन्म - स्थान: | मक्का, ओटोमान साम्राज्य, सऊदी अरब |
मृत्यु - तिथि: | 22 फरवही 1958 |
मृत्यु - स्थान: | दिल्ली, भारत |
आंदोलन: | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
प्रमुख संगठन: | [भारतीय राष्ट्रीय कांग्रस]] |
मौलाना अबुल कलाम मुहीउद्दीन अहमद (11 नवंबर, 1888- 22 फरवरी, 1958) एक मुस्लिम विद्वान और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वरिष्ठ राजनीतिक नेता थे. वे उन मुस्लिम नेताओं में से थे जिन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता का समर्थन किया और सांप्रदायिकता के आधार पर देश विभाजन का विरोध किया. देश की स्वतंत्रता के बाद वे भारत सरकार के पहले शिक्षा मंत्री बने. वे मौलाना आजाद के नाम से जाने जाते हैं और आजाद उनका छद्मनाम है.
युवावस्था में आजाद धर्म और दर्शन पर उर्दू में कविता लिखते थे. पत्रकारिता के बदौलत उन्हें ख्याति मिली. उन्होंने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लिखा और भारतीय राष्ट्रीयता को बढ़ावा दिया. खिलाफ आंदोलन के नेता के रूप में वे राष्ट्रपति महात्मा गांधी के संपर्क में आए. जल्द ही वे गांधीजी के अहिंसक आंदोलन (सविनय अवज्ञा आंदोलन) के पक्के समर्थक हो गए और 1919 के रॉलेट एक्ट के विरोध में असहयोग आंदोलन को संगठित करने में सक्रिय भूमिका निभाई. आजाद गांधी जी के स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग और स्वराज जैसे आदर्शों के प्रति प्रतिबद्ध थे. 1923 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बने. वे कांग्रेस सबसे कम उम्र के अध्यक्ष थे.
1931 में वे धारासन सत्याग्रह के मुख्य आयोजकों में से एक थे. धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के कारण वे उस समय के सबसे प्रमुख नेताओं में शुमार हो गए. साँचा:Dubious. 1940 से 1945 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद पर कार्य किया. कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ मौलाना आजाद को तीन साल की जेल की सजा हुई. भारत विभाजन के प्रबल विरोधियों में आजाद का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. भारत की स्वंत्रता के बाद वे अंतरिम सरकार में शामिल हुए. भारत विभाजन के दौरान हिंसा के समय वे सांप्रदायिक सौहार्द्र बढ़ाने का कार्य करते रहे. भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने निशुल्क शिक्षा के साथ साथ भारतीय शिक्षा पद्धति और उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना में रूचि दिखाई. मौलाना आजाद को ही भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना का श्रेय दिया जाता है.
आरंभिक जीवन
मौलाना आजाद का परिवार मौलाना यानी हेरात, अफगानिस्तान के इस्लामिक विद्वानों से , ताल्लुक रखता था, जो मुगल शासन के दौरान बाबर के शासन काल में भारत में आ बसा. उनकी मां अरब के शेख मोहम्मद जहीर बातरी की पुत्री थी, जबकि पिता मौलाना खैरुद्दीन ईरान के थे जो बंगाल में रहते थे. [१][२][३] The family lived in the Bengal region until Maulana Khairuddin left India during the Indian rebellion of 1857 and settled in Mecca, the holiest city in Islam, where he met his wife.[४][५] The family returned to Kolkata (then Calcutta) in 1890 where his father earned a reputation as a learned Muslim scholar. Azad's mother died when he was 11 years old.[५]Azad was raised in an environment steeped in Islamic religion. He was given a traditional Islamic education, tutored at his home and in the neighbourhood mosque by his father and later religious scholars.[४] Azad mastered several languages, including Urdu, Arabic, Hindko, Persian, and Hindi. He was also trained in the subjects of Hanafi fiqh , shariat , mathematics, philosophy, world history and science by reputed tutors hired by his family. An avid and determined student, the precocious Azad was running a library, a reading room, a debating society before he was twelve, wanted to write on the life of Ghazali at twelve, was contributing learned articles to Makhzan (the best known literary magazine of the day) at fourteen[६], was teaching a class of students, most of whom were twice his age, when he was merely fifteen and succeeded in completing the traditional course of study at the young age of sixteen, nine years ahead of his contemporaries, and brought out a magazine at the same age.[७] In fact, in the field of journalism, he was publishing a poetical journal (Nairang-e-Aalam)[८] and was already an editor of a weekly (Al-Misbah), in 1900, at the age of twelve and, in 1903, brought out a monthly journal, Lissan-us-Sidq, which soon gained popularity.[९] At the age of thirteen, he was married to a young Muslim girl, Zuleikha Begum.[५] Azad was, more closer, a follower of the Ahl-i-Hadith school and compiled many treatises reinterpreting the Qur'an, the Hadith, and the principles of Fiqh and Kalam.[४] A young man, Azad was also exposed to the modern intellectual life of Kolkata, the then capital of British-ruled India and the centre of cultural and political life. He began to doubt the traditional ways of his father and secretly diversified his studies. Azad learned English through intensive personal study and began learning Western philosophy, history and contemporary politics by reading advanced books and modern periodicals. Azad grew disillusioned with Islamic teachings and was inspired by the modern views of Muslim educationalist Sir Syed Ahmed Khan, who had promoted rationalism. Increasingly doubtful of religious dogma, Azad entered a period of self-described "atheism" and "sinfulness" that lasted for almost a decade
No comments:
Post a Comment