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Saturday, January 12, 2013

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शिक्षाकर्मी आंदोलन: सरकार के फैसले पर टिकीं निगाहें


शिक्षाकर्मी आंदोलन: सरकार के फैसले पर टिकीं निगाहें

शिक्षाकर्मी आंदोलन: सरकार के फैसले पर टिकीं निगाहें

भास्कर न्यूज | Jan 07, 2013, 05:13AM IST
 
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रायपुर। शिक्षाकर्मियों को अब सरकार के फैसले का इंतजार है। सप्रे शाला मैदान में रविवार का दिन शिक्षाकर्मियों के लिए कश्मकश और तनाव भरा गुजरा। सुबह से शाम तक शिक्षाकर्मी एक-दूसरे से यही पूछते रहे कि शासन ने कोई फैसला लिया क्या? हालांकि, शिक्षाकर्मी अभी भी अपने फैसले पर अड़े हैं। शिक्षक पंचायत संघर्ष समिति ने मांग पूरी होने तक आंदोलन पर डटे रहने की घोषणा की है।
 
शिक्षक पंचायत आंदोलन समिति के संचालक सदस्य संजय शर्मा, केदार जैन और वीरेंद्र दुबे ने बताया कि शिक्षाकर्मियों के समर्थन में पालक और समाज का हर वर्ग है। शासन से पांच दौर की चर्चा का कोई हल नहीं निकला। इसके बावजूद धैर्यपूर्ण धरना जारी है।
 
शिक्षाकर्मियों के सप्रेशाला स्थित राज्यस्तरीय धरने में रविवार को अवकाश होने के बावजूद खासी भीड़ जुटी। उनकी मांगों के संबंध में निर्णय लेने के लिए कागजी कार्रवाई में जुटे उच्च स्तरीय अधिकारियों की सुबह से बैठक चल रही थी। इस वजह से राज्यभर के शिक्षाकर्मी बेचैन थे। उन्हें हर पल ऐसा आभास होता रहा कि किसी न किसी फैसले की खबर जल्द आएगी। इसी इंतजार में पूरा दिन गुजर गया।
 
अनशनकारियों की तबीयत बिगड़ी
 
सप्रेशाला मैदान में आमरण अनशन पर बैठे दो शिक्षाकर्मियों की तबीयत बिगड़ गई। डॉक्टरों की टीम ने पहुंचकर उनका परीक्षण किया और अस्पताल में भर्ती करने की सलाह दी। अनशनकारी शिक्षाकर्मियों ने डॉक्टर सलाह को मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने दो टूक कह दिया कि वे अनशन जारी रखेंगे। शिक्षक पंचायत संघर्ष समिति के सदस्यों ने उन्हें समझाइश दी। इसके बाद वे अस्पताल रवाना हुए।
 
आज दो घंटे नेशनल हाईवे जाम
 
शिक्षाकर्मियों की मांगों के समर्थन में सर्व आदिवासी समाज सोमवार को दोपहर 12 से 2 बजे तक दो घंटे का नेशनल हाईवे जाम करेगा। संघर्ष समिति के संचालक सदस्य केदार जैन ने बताया कि केसकाल में सर्व आदिवासी समाज रोड पर उतरेगा। उन्होंने बताया कि समाज की ओर से शासन को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया गया है। इस अवधि के भीतर शिक्षाकर्मियों की मांगों के संबंध में उचित निर्णय नहीं लिए जाने की दशा में समाज पूरे राज्य में बेमियादी चक्काजाम अभियान चलाएगा।
 
247 करोड़ का भार पड़ेगा
 
शासन स्तर पर यदि सात साल की सेवा पूरी करने वाले शिक्षाकर्मियों को नियमित वेतनमान देने का फैसला हो जाता है, तो सरकारी खजाने पर सालाना 247 करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ेगा। इसमें 81 करोड़ रुपए केंद्र सरकार से मिलेंगे। राज्य शासन को अपनी जेब से 165 करोड़ देना पड़ेगा। राज्य शासन की ओर से शिक्षाकर्मियों के प्रतिनिधि मंडल से इस बारे में जानकारी मांगी गई थी कि छठवां वेतनमान दिए जाने पर कितना भार पड़ेगा। एक-एक शिक्षाकर्मी की गणना करने के बाद उन्होंने यही रिपोर्ट शासन को भेजी है।
 
38,384 शिक्षाकर्मी दायरे में
 
शासन से साल साल की सेवा अवधि पूरे करने वाले शिक्षाकर्मियों को यदि छठवां वेतनमान दिए जाने का निर्णय लिया जाता है, तो 38 हजार 384 शिक्षाकर्मी इसके दायरे में आएंगे। शासन स्तर पर 2005 के बाद के शिक्षाकर्मियों के लिए वेतन पुनरीक्षण किए जाने पर मंथन किया जा रहा है। मंजूरी की मुहर लगने पर 2005 के बाद के शिक्षाकर्मियों को समयमान वेतनमान का लाभ मिलेगा। इससे उनके वेतन में बढ़ोतरी होगी। शिक्षाकर्मी इस बारे में राज्य शासन की तरफ से जवाब का इंतजार कर रहे हैं। पॉलिसी बनने से आगे भी शिक्षाकर्मियों को इसका लाभ मिलेगा।
 
सीएम हाउस में धरना देंगे शिक्षाकर्मी
 
प्राचार्य प्रधानपाठक भर्ती मंच ने 10 जनवरी को मुख्यमंत्री निवास के भीतर धरना देने की घोषणा की है। मंच के संयोजक संजय तिवारी ने बताया कि शिक्षाकर्मी 24 बार मुख्यमंत्री से जनदर्शन कार्यक्रम में मिलकर प्रधानपाठक भर्ती परीक्षा आयोजित करने और उसके माध्यम से शिक्षाकर्मियों के नियमितीकरण का रास्ता खोलने का आग्रह कर चुके हैं। शासन स्तर पर इस दिशा में पहल नहीं किए जाने के विरोध में शिक्षाकर्मियांे ने अब सीएम निवास के भीतर ही धरना देने का निर्णय लिया है। शिक्षाकर्मी जनदर्शन कार्यक्रम में ज्ञापन सौंपने पहुंचेंगे और अर्जी देने के बाद वहीं धरने पर बैठ जाएंगे।
 
नशे में आंदोलनकारी महिलाओं से छेड़खानी, राजनारायण हिरासत में
 
शिक्षाकर्मी आंदोलन का विरोध कर रही शिक्षक पंचायत आंदोलन समिति के प्रदेश संचालक राजनारायण द्विवेदी ने अपने एक साथी के साथ रविवार देर रात सप्रे शाला मैदान पहुंचकर बेमियादी धरने पर बैठी महिलाओं से छेड़खानी करते हुए हंगामा किया। शिक्षाकर्मियों का आरोप है कि नशे में धुत द्विवेदी ने पिस्टल दिखाकर आंदोलन पर बैठे शिक्षाकर्मियों को धमकी देने की कोशिश की। इसके बाद शिक्षाकर्मी उग्र हो गए और उन्होंने द्विवेदी की जमकर पिटाई कर दी। मारपीट करने में महिलाएं भी शामिल थीं। इस बीच, घटना की खबर लगते ही राजधानी में इधर-उधर फैले शिक्षाकर्मी भी धरना स्थल पहुंच गए। इसके बाद महिलाओं ने थाने पहुंचकर रिपोर्ट लिखाई। शिक्षाकर्मी नेताओं ने एसएसपी दीपांशु काबरा, सिटी एसपी डॉ. लाल उमेद सिंह के अलवा एडीएम संजय अग्रवाल को घटना की सूचना दी। इसके बाद पुलिस ने द्विवेदी को हिरासत में लेकर डॉक्टरी मुलाहिजे के लिए भेज दिया। घटना से नाराज शिक्षाकर्मी सड़क पर उतरकर नारेबाजी करने लगे। घटना के बाद महिलाओं ने कहा, हम लोग शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे हैं। हमारा समर्थन करने की बजाय राजनारायण हमारा विरोध कर रहा है। इतना ही नहीं, उसने हमारे साथ छेड़खानी भी की।
 
सीईओ की शिकायत
 
जिला पंचायत रायपुर के प्रस्ताव को शून्य घोषित कर शिक्षाकर्मियों के निलंबन की कार्रवाई को सही ठहराने के विरोध में अब पंचायत प्रतिनिधि सड़क पर उतर आए हैं। पंचायत प्रतिनिधियों ने पंचायत विभाग के आयुक्त युनूस अली से मुलाकात कर जिला पंचायत की सीईओ शम्मी आबिदी की जमकर शिकायत भी की।
 
आयुक्त ने हड़ताली शिक्षाकर्मियों के निलंबन-बर्खास्तगी की तैयारी के फैसले को सही बताते हुए उनको उल्टे पैर वापस लौटा दिया। सदस्यों ने कमिश्नर से जिला पंचायत के सामान्य सभा के प्रस्ताव को वैध घोषित करने की मांग की। हालांकि उनकी मांगों को आयुक्त ने सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने पंचायत प्रतिनिधियों को बताया कि शिक्षाकर्मियों की हड़ताल की वजह से 45 लाख छात्रों की पढ़ाई एक महीने से प्रभावित हो रही है। इसलिए उन पर की गई कार्रवाई सही है।
 
इस संबंध में जिला पंचायत की सीईओ को किसी भी तरह को कोई नोटिस जारी नहीं किया जाएगा। इस विषय पर उनके पास कार्रवाई का अधिकार नहीं है। इसलिए मामला शासन को भेजा गया है। इस पर आगे की कार्रवाई राज्य सरकार करेगी। छत्तीसगढ़ त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधि संघ ने शिक्षाकर्मियों के निलंबन और बर्खास्तगी का विरोध करते हुए पंचायत कमिश्नर को ज्ञापन भी सौंपा। संघ के अध्यक्ष सुनील माहेश्वरी, जिला पंचायत सदस्य मंजू नायक, चंद्रहास नायक आदि ने बताया कि सामान्य सभा में पारित प्रस्ताव वैधानिक है। पंचायत राज अधिनियम की धारा-85 के अनुसार सुनवाई का अवसर दिए बिना प्रस्ताव को निलंबित नहीं किया जा सकता। जिला पंचायत सीईओ के अवैधानिक आदेश को वैधानिक कहना जिला पंचायत सदस्यों को अपमान है।
 

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